12 अगस्त 1997 को मुंबई में ऐसा दिल दहला देने वाला हादसा हुआ कि न्यूज़ में यह खबर देखने के बाद एक बार के लिए तो बॉलीवुड वालों को विश्वास भी नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ हो भी सकता है।
भारतीय संगीत उद्योग के दिग्गज और टी-सीरीज़ के संस्थापक गुलशन कुमार की हत्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपने जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं चाहा, अपनी भक्ति और सेवा भाव के लिए जाना जाता था, उसका इस तरह से अंत होना किसी के लिए भी विश्वसनीय नहीं था। इस लेख में हम 3D एनिमेशन की मदद से उस दिन की घटना का विस्तृत विश्लेषण और उसके पीछे के कारणों को समझेंगे।

गुलशन कुमार: संघर्ष से सफलता तक
गुलशन कुमार का जन्म 1951 में दिल्ली की एक साधारण पंजाबी परिवार में हुआ था। बहुत कम उम्र से ही उन्होंने अपने पिता के जूस की दुकान पर काम करके उनका हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। वह किसी अमीर परिवार में पैदा नहीं हुए थे, और उन्हें यह अच्छी तरह पता था कि उन्हें अधिक से अधिक पैसा कमाकर जल्द से जल्द अपने परिवार का सहारा बनना है।
मात्र 23 वर्ष की आयु में गुलशन कुमार ने एक कैसेट शॉप खोली, जहां वे शुरुआत में दूसरी कंपनियों के गाने बेचते थे। बाद में उन्होंने ‘सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज’ नाम से अपनी संगीत कंपनी बनाई, जिसमें वे अपने प्रोडक्शन के गाने बेचने लगे। उनकी मेहनत और दूरदर्शी सोच से यह व्यवसाय तेज़ी से बढ़ा, और उनकी कंपनी का ऑफिस नोएडा की सबसे पहली वाणिज्यिक इमारत बना।
क्या आप जानते हैं?
1983 में जब गुलशन कुमार ने अपनी कंपनी को 'टी-सीरीज़' नाम दिया, तो 'टी' का अर्थ था 'त्रिशूल', जो उनके भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा का प्रतीक था।
टी-सीरीज़ का उत्थान और गुलशन कुमार का स्वभाव
1990 के दशक तक आते-आते टी-सीरीज़ भारतीय संगीत उद्योग का एक प्रमुख नाम बन चुका था। भारत में रिलीज़ होने वाले कुल गानों में से 65% के अधिकार टी-सीरीज़ के पास थे। यह इतना प्रभावशाली ब्रैंड बन चुका था कि अगर टी-सीरीज़ किसी एल्बम के अधिकार नहीं खरीदता था, तो उसके सफल होने की संभावना बहुत कम होती थी।
गुलशन कुमार अपने उदार स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे। वे हमेशा नए प्रतिभाशाली लोगों को मौका देते थे, जैसे अनुराधा पौडवाल, सोनू निगम, कुमार सानू, और म्यूजिक डायरेक्टर जोड़ी नदीम-श्रवण। गुलशन कुमार अपनी संस्कृति का बहुत सम्मान करते थे और विभिन्न मंदिरों में दान भी करते थे। उन्होंने वैष्णो देवी मंदिर में एक भंडारा भी शुरू करवाया था, जो आज भी उनके नाम से जारी है।
“गुलशन कुमार इतने सॉफ्ट हार्टेड थे कि पिंजरे में बंद पक्षियों को खरीदकर उड़ा देते थे। रास्ते में कोई जानवर मर जाता था तो उसकी देह को खुद दफनाते थे।”
यह बात इतनी आसानी से समझ में नहीं आती कि जिस व्यक्ति ने अपने पूरे जीवन में दूसरों की सहायता की, उसी की हत्या गैंगस्टरों द्वारा इस तरह से की गई।
हत्या के पीछे का षड्यंत्र: आशिकी फिल्म से जुड़ा कनेक्शन
गुलशन कुमार की हत्या का कनेक्शन 1990 में रिलीज हुई ‘आशिकी’ फिल्म से जुड़ता है। टी-सीरीज़ ने इस फिल्म के गाने कंपोज करने का मौका उभरती हुई संगीतकार जोड़ी नदीम-श्रवण को दिया था। फिल्म के गानों की 20 मिलियन कॉपियां बिकीं, और इस सफलता के बाद लगभग सभी टी-सीरीज़ के गानों में नदीम-श्रवण का ही संगीत होता था।

संगीतकार के रूप में सफलता के बाद नदीम सैफी ने गायन में भी अपना हाथ आज़माना चाहा। हालांकि, गुलशन कुमार को लगता था कि नदीम की आवाज़ गायन के लिए उपयुक्त नहीं है, और उन्होंने नदीम को गाने से बचने की सलाह दी। लेकिन दोस्ती के नाते गुलशन कुमार ने नदीम के कुछ गाने जैसे ‘है अजनबी’ को प्रमोट करने के लिए तैयार हो गए।
जैसा कि गुलशन कुमार को अनुमान था, इन गानों पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली और एल्बम असफल रही। जब कंपनी को काफी बड़ा नुक्सान होने लगा, तो गुलशन कुमार ने नदीम के गानों को प्रमोट करना एकदम बंद कर दिया।
नदीम को यह बात अखरी कि न तो गुलशन कुमार उसे काम दे रहे थे और न ही उसके गीतों को प्रमोट कर रहे थे। इसी बात का बदला लेने के लिए नदीम ने गुलशन कुमार की हत्या करवाने का निर्णय लिया, और इस कार्य के लिए उसने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पास सुपारी दी।
हत्या की योजना: दुबई मीटिंग से लेकर धमकी भरे कॉल तक
मई 1997 में दुबई के एक होटल में गुलशन कुमार की हत्या की योजना बनाने के लिए एक बैठक हुई। इस बैठक में म्यूजिक डायरेक्टर नदीम सैफी, दाऊद इब्राहिम के छोटे भाई अनीस इब्राहिम और दाऊद का दाहिना हाथ अबू सलेम मौजूद थे।
नदीम ने बताया कि कैसे गुलशन कुमार ने उसका जीना मुश्किल कर रखा है और उन दोनों से मदद मांगी। अबू सलेम ने 25 लाख रुपये टोकन मनी लेकर गुलशन कुमार को मारने का वादा किया। अबू सलेम के लिए यह फायदे का सौदा था, क्योंकि वह संगीत उद्योग के सबसे बड़े सितारे को मारकर अंडरवर्ल्ड में और अधिक प्रसिद्ध होना चाहता था।

अबू सलेम ने गुलशन कुमार की हत्या की योजना को पूर्ण रूप से बनाने के लिए उनके दिनचर्या की प्रत्येक जानकारी एकत्र की – वे कब खाना खाते हैं, कब सोते हैं, और यहां तक कि कब शौचालय जाते हैं। सब कुछ उसने बारीकी से जाना।
धमकी भरे फोन कॉल
5 अगस्त 1997: अबू सलेम ने पहली बार गुलशन कुमार को कॉल किया और 10 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी। साथ ही यह भी पूछा कि वह नदीम के गाने प्रमोट क्यों नहीं कर रहे हैं।
9 अगस्त 1997: दूसरी बार अबू सलेम का कॉल आया और फिर फिरौती मांगने पर गुलशन कुमार ने कहा, “तुम्हें पैसे देने से अच्छा है कि मैं वैष्णो देवी में भंडारा करवा दूंगा।”
10-11 अगस्त 1997: अबू सलेम ने शूटरों को अंतिम निर्देश दिए और हत्या की तैयारियां पूरी कीं।
आम तौर पर ऐसे धमकी भरे कॉल्स को लोग पुलिस को रिपोर्ट करते हैं, लेकिन बहुत अजीब बात यह है कि गुलशन कुमार के भाई किशन कुमार द्वारा बार-बार समझाए जाने के बावजूद उन्होंने यह 10 करोड़ रुपये की फिरौती वाली बात पुलिस को नहीं बताई।
गुलशन कुमार का इस प्रकार से अंडरवर्ल्ड डॉन से न डरना अबू सलेम के अहंकार को ठेस पहुंचा गया, जिससे स्थिति और भी खतरनाक हो गई।
12 अगस्त 1997: वह काला दिन
गुलशन कुमार के शेड्यूल का अध्ययन करने के बाद अबू सलेम ने उन्हें मारने का सही अवसर ढूंढ लिया – उनका रोज अंधेरी के जितेश्वर महादेव मंदिर में पूजा के लिए जाना।
मंदिर की स्थिति और आसपास का माहौल अबू सलेम के शूटरों को हत्या के बाद भागने के लिए सुविधाजनक लग रहा था। हमले के लिए तीन शूटरों को नियुक्त किया गया – अब्दुल रौफ उर्फ दाऊद मर्चेंट, अब्दुल राशिद और अनिल शर्मा।
12 अगस्त 1997 का कालक्रम:
- सुबह 10:00 बजे: गुलशन कुमार अपने ड्राइवर रूपलाल सरोज के साथ जितेश्वर महादेव मंदिर पहुंचे
- गाड़ी मंदिर से 6 फुट दूर धूप छाया अपार्टमेंट के बाहर पार्क की गई
- सुबह 10:15 बजे: गुलशन कुमार पूजा करके मंदिर से बाहर निकले
- उनका ड्राइवर रूपलाल उनसे पूजा की थाली ले लेता है
- गुलशन कुमार अपनी गाड़ी की ओर बढ़ने लगते हैं
हमला
मंदिर के पास धूप छाया अपार्टमेंट के सामने एक नाई की दुकान थी, जहां तीनों शूटर्स बैठकर गुलशन कुमार के मंदिर से बाहर आने का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही गुलशन कुमार अपनी कार के पास पहुंचे, अब्दुल रौफ ने उनकी कनपटी पर बंदूक तान दी और कहा, “बहुत कर ली पूजा, अब मरने के बाद करना।”
गुलशन कुमार कुछ समझ पाते, इससे पहले ही एक गोली चली जो उनके सिर को छूते हुए निकल गई। घबराहट में वे पास के एक सार्वजनिक शौचालय में छुपने के लिए भागे, लेकिन उनका पैर फिसल गया। पैर फिसलते ही अब्दुल रौफ ने उन पर तीन गोलियां और चला दीं, जो उनकी पीठ में लगीं।
तीन गोलियां लगने और बुरी तरह घायल होने के बावजूद गुलशन कुमार स्वयं को घसीटते हुए आगे बढ़ने लगे। लेकिन अब्दुल रौफ भी उनके पीछे-पीछे अपने शिकार का पीछा करता रहा। गुलशन कुमार दीवार का सहारा लेकर उठने की कोशिश करते हैं, पर वहीं गिर जाते हैं।

ड्राइवर रूपलाल गुलशन कुमार की मदद करने के लिए आगे आता है और पूजा का कलश उठाकर अब्दुल रौफ पर फेंकता है। इस पर अब्दुल रौफ रूपलाल के दोनों पैरों में गोली मार देता है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि तीन गोलियां लगने के बावजूद गुलशन कुमार पास के घरों के दरवाजे पर हाथ जोड़कर मदद मांगते रहे, लेकिन किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला। आखिर में अब्दुल रौफ ने उन पर और 12 गोलियां दागीं, जिससे कुल 16 गोलियों से उनका शरीर छलनी हो गया।
हत्या के बाद: जांच और परिणाम
गुलशन कुमार की हत्या के बाद तीनों शूटर्स मौके से भाग गए। बाद में मंदिर के पुजारी और एक अन्य व्यक्ति ने गंभीर रूप से घायल गुलशन कुमार को कूपर अस्पताल पहुंचाया, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
अब्दुल रौफ को 2001 में कोलकाता में गिरफ्तार किया गया और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई। इस मामले में कुल 19 लोगों पर आरोप लगाए गए, लेकिन पर्याप्त सबूतों के अभाव में शेष सभी को रिहा कर दिया गया।
नदीम सैफी हत्या के बाद तुरंत लंदन भाग गया और आज तक वापस नहीं आया है। रिपोर्टों के अनुसार, टिप्स कंपनी के मालिक रमेश तौरानी का नाम भी इस मामले में आया था, लेकिन उन्हें भी सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
अबू सलेम को बाद में पुर्तगाल से गिरफ्तार किया गया और भारत लाया गया। वह अभी भी जेल में है और अन्य कई आपराधिक मामलों में भी आरोपी है।
निष्कर्ष: एक युग का अंत
गुलशन कुमार की हत्या भारतीय संगीत उद्योग के इतिहास का एक काला अध्याय है। एक ऐसे व्यक्ति की हत्या, जो अपनी परोपकारी प्रवृत्ति और धार्मिक भावना के लिए जाना जाता था, केवल इसलिए की गई क्योंकि वह किसी के गानों को प्रमोट नहीं कर रहे थे – यह बात आज भी अविश्वसनीय लगती है।
गुलशन कुमार की विरासत आज भी टी-सीरीज़ के रूप में जीवित है, जो अब उनके बेटे भूषण कुमार के नेतृत्व में दुनिया की सबसे बड़ी यूट्यूब चैनलों में से एक है। लेकिन उस दिन न केवल एक सफल व्यवसायी की जान गई, बल्कि एक ऐसे इंसान का जीवन भी समाप्त हो गया जो सच्चे अर्थों में दूसरों की भलाई चाहता था।
गुलशन कुमार की हत्या 26 साल बाद भी हमें याद दिलाती है कि कैसे ईर्ष्या, प्रतिशोध और अहंकार किसी के जीवन को तबाह कर सकते हैं। यह हमें सिखाती है कि सफलता के साथ-साथ सतर्कता भी आवश्यक है, और कभी-कभी जिन लोगों पर हम भरोसा करते हैं, वही हमारे सबसे बड़े दुश्मन बन सकते हैं।

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